इश्क़ से यूँ अदावत हो गयी है,
दूर रहने की आदत हो गयी है...
मिल लें खुद से कभी मगर कैसे,
आईने से बग़ावत हो गयी है.
तेरे खत में तेरा दिल उतरा होगा,
यहाँ बेदिल सी हसरत हो गयी है.
अब भी छूती हैं मेरा बदन अक्सर,
तेरी यादें बेगैरत हो गयी हैं.
शिकवों की धूप अब तो ढलने दो,
आँखों को भी हरारत हो गयी है.
चलो एक मोड़ पर खो जाते हैं,
ज़रा लम्बी हिकायत हो गयी।
~ सबा
हिकायत - story
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