हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला हिंदी की सबसे लोकप्रिय रचनाओं में से है. कुछ दिनों पहले सह-भागिता कविता प्रयास में मधुशाला से प्रेरित कुछ छंद लिखे. प्रस्तुत हैं -
कितने कृष्ण हैं, कितने अर्जुन, जीवन रण, अग्निमाला,
या तो हलाहल कंठ उतारें, या मांगें अमृत प्याला ...
सत्य-असत्य, अपरिभाषित से, स्वप्न पथिक के आँखों के,
जीवन सार बताता साक़ी, गांडीव मेरी मधुशाला ...
भोर सूर्य सा उदित रहा वो, युगों युगों जलने वाला,
साँझ छुपाती आँचल में जब, अधरों पर शीतल हाला ...
हाँथ कांपते, मधुमय नभ से, तारों को चुन लाते हैं,
छोड़ प्रजव्वलित दिन की बातें, रातें कहती मधुशाला।
अम्बर की लाली धरती पर, रक्तिम पुष्पों की माला,
पहन उतर आई नभ से, जैसे संध्या हो मधुबाला...
कल्पना कवी की, या छलनी, भेस धरे नव तृष्णा का,
हाथ पकड़, ले जाती, भूले भटकों को फिर मधुशाला...
छंद कोई टूटा और छलका, जैसे हो मधु का प्याला,
थाम लिया पलकों पर, हलके से, जब छिटकी थी हाला...
सपनों को बोझिल करते हैं बिखरे सागर के टुकड़े...
कलम मेरी रातों को जगकर, क्यों लिखती है मधुशाला...
अधखोले दरवाज़ों से जब जब झांके पीने वाला,
इक बाज़ार सजा दिखता है, कौन यहाँ बिकने वाला?
मोल लिखा है हर चेहरे पर, कौन खरीदेगा किसको
अब भी प्रेम का पान कराती मुफ़्त में मेरी मधुशाला।
सबा
कितने कृष्ण हैं, कितने अर्जुन, जीवन रण, अग्निमाला,
या तो हलाहल कंठ उतारें, या मांगें अमृत प्याला ...
सत्य-असत्य, अपरिभाषित से, स्वप्न पथिक के आँखों के,
जीवन सार बताता साक़ी, गांडीव मेरी मधुशाला ...
भोर सूर्य सा उदित रहा वो, युगों युगों जलने वाला,
साँझ छुपाती आँचल में जब, अधरों पर शीतल हाला ...
हाँथ कांपते, मधुमय नभ से, तारों को चुन लाते हैं,
छोड़ प्रजव्वलित दिन की बातें, रातें कहती मधुशाला।
अम्बर की लाली धरती पर, रक्तिम पुष्पों की माला,
पहन उतर आई नभ से, जैसे संध्या हो मधुबाला...
कल्पना कवी की, या छलनी, भेस धरे नव तृष्णा का,
हाथ पकड़, ले जाती, भूले भटकों को फिर मधुशाला...
छंद कोई टूटा और छलका, जैसे हो मधु का प्याला,
थाम लिया पलकों पर, हलके से, जब छिटकी थी हाला...
सपनों को बोझिल करते हैं बिखरे सागर के टुकड़े...
कलम मेरी रातों को जगकर, क्यों लिखती है मधुशाला...
अधखोले दरवाज़ों से जब जब झांके पीने वाला,
इक बाज़ार सजा दिखता है, कौन यहाँ बिकने वाला?
मोल लिखा है हर चेहरे पर, कौन खरीदेगा किसको
अब भी प्रेम का पान कराती मुफ़्त में मेरी मधुशाला।
सबा