एक जंगल काट कर शहर बना लिया
मैंने चींटीयों की बाम्बी पर, महल बना लिया।
चींटियों सी सरकती रफ़्तार शहर की
हज़ारों गुना बोझ लिए कंधों पर
फिसलती, अनवरत चलती
हर रात, जुगनुओं की कतारों में बदलती...
पेड़ों की शाखों पर, मकड़ी के जालों से
मकड़ियों और मक्खियों की, जीत-हार की चालों से
पत्तों के ढेरों की सरसराहट और सन्नाटा
सब समेट, सड़कों का दुशाला बुन डाला
ओढ़ते थे धुंध जो, अब रफ़्तार ओढ़ बैठे हैं
सुस्त धूप के रसिक, छाँव का पता मांगते हैं...
उलझनों को फलसफों का हासिल बना लिया
मैंने चींटियों की बाम्बी पर, महल बना लिया।
घांस खाने वाले जानवर, चींटियों पे राज करते हैं
और मांस खाने वाले, शहर की हिफ़ाज़त में लगे हैं.
कुछ नरभक्षी, रात सड़कों पे घूमा करते हैं
न जाने क्यों, सब एक दूसरे से डरते हैं...
नदियों को बोतलों में बंद कर
सहर को घड़ी की सुईओं का शाग़िर्द कर
शाम को भ्रम बताया, और रात को डर
सूरज, चाँद और तारों को बक्सों में धर
झाड़-फ़ानूस को, फ़लक़ बना लिया
मैंने चींटियों की बाम्बी पर, महल बना लिया।
~ सबा
मैंने चींटीयों की बाम्बी पर, महल बना लिया।
चींटियों सी सरकती रफ़्तार शहर की
हज़ारों गुना बोझ लिए कंधों पर
फिसलती, अनवरत चलती
हर रात, जुगनुओं की कतारों में बदलती...
पेड़ों की शाखों पर, मकड़ी के जालों से
मकड़ियों और मक्खियों की, जीत-हार की चालों से
पत्तों के ढेरों की सरसराहट और सन्नाटा
सब समेट, सड़कों का दुशाला बुन डाला
ओढ़ते थे धुंध जो, अब रफ़्तार ओढ़ बैठे हैं
सुस्त धूप के रसिक, छाँव का पता मांगते हैं...
उलझनों को फलसफों का हासिल बना लिया
मैंने चींटियों की बाम्बी पर, महल बना लिया।
और मांस खाने वाले, शहर की हिफ़ाज़त में लगे हैं.
कुछ नरभक्षी, रात सड़कों पे घूमा करते हैं
न जाने क्यों, सब एक दूसरे से डरते हैं...
नदियों को बोतलों में बंद कर
सहर को घड़ी की सुईओं का शाग़िर्द कर
शाम को भ्रम बताया, और रात को डर
सूरज, चाँद और तारों को बक्सों में धर
झाड़-फ़ानूस को, फ़लक़ बना लिया
मैंने चींटियों की बाम्बी पर, महल बना लिया।
~ सबा