वो चाँद जो बादल से जा उलझा और खो गया
इक रात मेरी बैठी है, उसके दीदार के लिये…
बड़ी बेमेहदूद लगती हैं मुहब्बत की बंदिशें…
अब आँखें मूँदता हूँ विसाल-ए-यार के लिये…
सबा
Subah ke khwab se chura ke kuch bunde os ki... Maine sham ka daman bhrne ko saamaan jutaya hai.
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