तुम मिले भी तो कहाँ?
खरीदारों के बाज़ार में ...
अब इस व्यापार में क्या बेचें, क्या खरीदें यहाँ?
सुना है बाज़ार में, मुफ़्त की मुस्कुराहट भी नहीं मिलती ...
तुम सौदागर हो यहाँ और हम सामान हैं ...
दोनो कुछ अदलने-बदलने आए हैं।
कई खरीदार हैं यहाँ ...
मोल भाव कर खेलने को,
तोलने सिक्कों की धत (metal) झनक-चमक
थोड़ा नफ़ा नुकसान गिनने आए हैं?
या फिर बुझे दिल सुलगाने को
एक अजीब रोज़गार ढूँढने आए हैं।
तुझे देखना दिल भर कर भी चोरी है मेरे लिए ...
पर अगर मैं कुछ पल लेना चाहुं तुम्हारे
ये सर्राफ बड़ी ऊँची बोली लगता है
है जेब में सिक्कों का वज़न, पेशानी पर पसीने की बूंदों से कम
वैसे तो अपनी सांसे दे देते तेरे मोल में
पर इन सांसो पर कोई और हक़ जताता है
गल्ले पर कभी कोई घर सजे नहीं
क्या करने आये थे यहाँ ये लाचार सामान?
ज़माने के खरोश के ग़ुलाम सज गए
सज गए नुमाइश में , कीमत भी लग ही जाएगी ...
और बेइन्तेहा है , बेवजह हो कर भी
इस बाज़ार से थोड़ी हमदर्दी की उम्मीद।
मेरी मुफ़्लसि, और तेरी फ़कीरी
दोनों बेकार बेबस बेसबब ...
देखते हैं एक दुसरे को शीशे के पर्दों के पीछे से ...
चलो थोड़ा बेशर्म होकर, अपनी मजबूरी पर थोड़ा हँस कर,
चलो आज एक मुफ़्त का सौदा करते हैं
इस बाज़ार से चुरा कर कुछ पल के लिए
किसी दरख़्त के साये में चल कर खिलते हैं ...
खरीदारों के बाज़ार में ...
अब इस व्यापार में क्या बेचें, क्या खरीदें यहाँ?
सुना है बाज़ार में, मुफ़्त की मुस्कुराहट भी नहीं मिलती ...
तुम सौदागर हो यहाँ और हम सामान हैं ...
दोनो कुछ अदलने-बदलने आए हैं।
कई खरीदार हैं यहाँ ...
मोल भाव कर खेलने को,
तोलने सिक्कों की धत (metal) झनक-चमक
थोड़ा नफ़ा नुकसान गिनने आए हैं?
या फिर बुझे दिल सुलगाने को
एक अजीब रोज़गार ढूँढने आए हैं।
तुझे देखना दिल भर कर भी चोरी है मेरे लिए ...
पर अगर मैं कुछ पल लेना चाहुं तुम्हारे
ये सर्राफ बड़ी ऊँची बोली लगता है
है जेब में सिक्कों का वज़न, पेशानी पर पसीने की बूंदों से कम
वैसे तो अपनी सांसे दे देते तेरे मोल में
पर इन सांसो पर कोई और हक़ जताता है
गल्ले पर कभी कोई घर सजे नहीं
क्या करने आये थे यहाँ ये लाचार सामान?
ज़माने के खरोश के ग़ुलाम सज गए
सज गए नुमाइश में , कीमत भी लग ही जाएगी ...
और बेइन्तेहा है , बेवजह हो कर भी
इस बाज़ार से थोड़ी हमदर्दी की उम्मीद।
मेरी मुफ़्लसि, और तेरी फ़कीरी
दोनों बेकार बेबस बेसबब ...
देखते हैं एक दुसरे को शीशे के पर्दों के पीछे से ...
चलो थोड़ा बेशर्म होकर, अपनी मजबूरी पर थोड़ा हँस कर,
चलो आज एक मुफ़्त का सौदा करते हैं
इस बाज़ार से चुरा कर कुछ पल के लिए
किसी दरख़्त के साये में चल कर खिलते हैं ...
With special thanks to my uncle Sufi Benaam for valuable inputs and editing it without asking too many questions...
Written by~ Saba
Edited by~ Sufi Benaam