ज़िन्दगी फिर से तेरी बज़्म में आना है मुझे,
और रुसवाइयों का बोझ उठाना है मुझे …
ख्वाहिशों मुझसे थोड़ी दूरी बनाये रखो
अभी कुछ और ख़्वाबों को सुलाना है मुझे.
मेरे हिस्से की ज़लालत को संभाले रखना,
ज़रा कुछ दूर बेआरज़ू जाना है मुझे.
कोई रिश्ता नहीं है तेरी सेहर से मेरा …
मेरी इस रात को स्याही में मिलाना है मुझे…
सीम-ओ-ज़र से न यूँ तोला करो इन हसरतों को,
ये दाग़ इश्क़ के दामन पे, मिटाना है मुझे…
सुर्ख हो या की सब्ज़, तेरे गुलशन तेरे हैं,
मैं तो मिटटी हूँ, ज़र्रों में मिल जाना है मुझे…
~ सबा
zindagi phir se teri bazm me ana hai mujhe
aur ruswaiyon ka bojh uthana hai mujhe
khwahishon mujhese thodi doori banaye rakho
abhi kuch aur khwabon ko sulana hai mujhe
mere hisse ki zalalat ko sambhale rakho
zara kuch door, be-aarzoo jana hai mujhe
koi rishta nahi hai teri seher se mera
meri is raat ko syahi me milana hai mujhe
seem-o-zar se na yun tola karo in hasraton ko
ye daagh ishq ke daman pe, mitana hai mujhe...
surkh ho ya ki sabz, tere gulshan tere hain bas
main to mitti hun, zarron me mil jana hai mujhe
~ Saba
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