कुछ आधे अधूरे ख्वाबों को
फिर से बहलाया फुसलाया
कल वक़्त उन्हे देंगे सारा
कह कर बामुश्किल समझाया...
ये ख्वाब अधूरे, बच्चों से,
खुद ही हँस लेंगे, रो लेंगे;
खुद बहलेंगे एक दूजे से,
कभी झगड़ेंगे, कभी खेलेंगे.
हम एक कच्ची छत के नीचे,
इन ख्वाबों को रख जाते हैं …
वादे कल-कल के कर कर के
ख्वाबों को रोज़ सुलाते हैं.
फिर से बहलाया फुसलाया
कल वक़्त उन्हे देंगे सारा
कह कर बामुश्किल समझाया...
ये ख्वाब अधूरे, बच्चों से,
खुद ही हँस लेंगे, रो लेंगे;
खुद बहलेंगे एक दूजे से,
कभी झगड़ेंगे, कभी खेलेंगे.
हम एक कच्ची छत के नीचे,
इन ख्वाबों को रख जाते हैं …
वादे कल-कल के कर कर के
ख्वाबों को रोज़ सुलाते हैं.
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