दम घोंटने को दहलीज़ पर
आसमान झुका था।
आसमान झुका था।
शहर अपने ही निःश्वास में
घुटा जाता है...
और कतारों में खड़े आदमी
नलके में बंद पानी की तरह
आधी सी आज़ादी के सहारे
धीरे धीरे रिसते।
घुटा जाता है...
और कतारों में खड़े आदमी
नलके में बंद पानी की तरह
आधी सी आज़ादी के सहारे
धीरे धीरे रिसते।
आसमान को कागज़
किसने बना दिया?
हमारा सारा ज़हर पी जाता है।
कालिख़
स्याह बादल और धुआं
मेरी तस्वीर क्यों उकेरते हैं?
किसने बना दिया?
हमारा सारा ज़हर पी जाता है।
कालिख़
स्याह बादल और धुआं
मेरी तस्वीर क्यों उकेरते हैं?
और पन्ने पर लकीरों के बीच
सहमी,
दायरों में करीने से समेटी
किसी बच्चे की अल्हड़ लिखाई
परिंदों की परवाज़
और इन्द्रधनुष का ख्वाब
सीधी सपाट सीमित
रेखाओं में
टूट के बिख़रते...
बचपन को उन्ही पन्नो में
दफ़नाते।
सहमी,
दायरों में करीने से समेटी
किसी बच्चे की अल्हड़ लिखाई
परिंदों की परवाज़
और इन्द्रधनुष का ख्वाब
सीधी सपाट सीमित
रेखाओं में
टूट के बिख़रते...
बचपन को उन्ही पन्नो में
दफ़नाते।
असमान में सूरज भी
गलत पड़े अनुस्वार सा
अपने अस्तित्व का प्रमाण
ख़ुद से मांगता
रोज सुबह, गला खख़ार
जगाता।
गलत पड़े अनुस्वार सा
अपने अस्तित्व का प्रमाण
ख़ुद से मांगता
रोज सुबह, गला खख़ार
जगाता।
क्या ये स्याही खुरच कर
मिट पायेगी?
आज सब अस्त हो जाते
तो शायद कल सुबह हो जाती।
मिट पायेगी?
आज सब अस्त हो जाते
तो शायद कल सुबह हो जाती।
सबा
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