यहाँ फूल बिकते हैं बेज़ार हो कर,
अपने घर को सजाने सूखे पत्ते लाते हैं …
यूँ तो तोहफे में देने को यहाँ सामान है बहुत,
चलो ख्वाबों की अदला-बदली से काम चलाते हैं.
मुफ़लिस हूँ मैं बेदिल तो नहीं खुद से क्या कहुँ
टूटे खिलौनो को ख़यालों की गोंद से चिपकाते हैं.
तारे और चाँद मुफ्त है, रात बेनींद भी तो है,
इस खाली कमरे कि छत पर इनको सजाते हैं.
ख़ाकज़दा मजलिसों में यूँ तेरा ज़िक्र तो नहीं,
दिखावा है या बंदगी, सर सजदे में झुक जाते हैं...
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