घिसटती हुई साथ आई थी बहुत दूर से
फटी हुई एड़ियों की दरारों में जमी धूल की सहेली
एक टूटी चप्पल
जोड़ी में हो कर भी अकेली।
पैरों को पूरे दम ख़म से पकड़
कर्तव्य पालन की मिसाल
मीलों चल चल के घिस चुकी
चिकने हो चुके तलवों की फ़िसलन को संभाल
एक टूटी चप्पल
अभी कुछ और दूर जाने को तैयार...
रास्ते की ठोकरों से
कोई शिकवा किया भी होगा
चुभी तो होंगी बेहिस निगाहें
तुम्हारी बेपरवाही को चुप चाप सहा होगा।
और दर्द भी होगा,
उन मिट्टी में सने
दूर से चले
पैरों के छालों से रिसते ख़ून को
उसी मिट्टी में मिलते देखना, और कुछ न कर पाना
किश्तों में मरने वालों को
रोज़ थोड़ा थोड़ा दफ़नाना...
एक टूटी चप्पल
झुर्रियों से चटके चेहरे को जोड़ नहीं सकती
पसीने से धुले मुकद्दर को मोड़ नहीं सकती
ना सहला सकती है वक़्त के बोझ से झुकी पीठ...
वो तो थके पैरों को बाहों में भर चूम भी नहीं सकती
सिर्फ़ घिसट सकती है,
तब तक जब तक मर न जाए।
एक टूटी चप्पल,
ढूंढती है कोई मोची की दुकान
शायद एक बार और
जुड़ जाए।
~सबा