written on 216th birth anniversary of Mirza Ghalib...
ना था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता?
जब हुआ ग़म से यूँ बेहिस तो ग़म क्या सर के कटने का
न होता गर जुदा तन से तो ज़ानू पे धरा होता
हुई मुद्दत के ग़ालिब मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना के यूँ होता तो क्या होता। ~ मिर्ज़ा ग़ालिब
( बेहिस - shocked/stunned, ज़ानू - knee)
मिर्ज़ा
कहाँ किस्सों की उम्र होती है
किसी कहानी को लाठी टेक चलते देखा है क्या?
वो क्या था, क्या हुआ
किसने जाना …
कुछ आशार, कुछ मिसरे,
कुछ लमहे, और एक अरसा …
किसी शायर की कलम से तेरी खुशबु उठती है,
किसी आशिक़ के होंठों पे रहा तेरी ज़ुबाँ का चर्चा ...
कहीं कोई आँच लेता है टूटे दिल को पिघलाने,
तो कोई छाँव ढूँढता है सुलगती रूह बुझाने …
तेरा होना भी क्या होता
नहीं है फिर भी तो है ही
हुई मुद्दत के 'ग़ालिब' ढूंढते हैं हम निशां तेरे
और उसपर सोचना अक्सर कि 'यूँ होता तो क्या होता' ~ सबा
na tha kuchch to KHuda tha, kuchch na hota to KHuda hota
duboya mujhko hone ne, na hota maiN to kya hota ?
huaa jab GHam se yooN behis to GHam kya sar ke kaTne ka
na hota gar juda tan se to zaanooN par dhaRa hota
huee muddat ke 'GHalib' mar gaya par yaad aata hai
wo har ek baat pe kehana, ke yooN hota to kya hota ? ~ Mirza Ghalib
[ behis = shocked/stunned, zaanooN = knee ]
Kaha kisso ki umra hoti hai,
Kisi kahani ko lathi tekte dekha hai kya?
Wo kya tha, kya hua
kisne jana...
Kuch ashar, kuch misre,
kuch lamhe aur ek arsa,
Kisi shayar ki kalam se teri khushbu uthti hai,
Kisi ashiq ke hotho pe raha teri zuban ka charcha...
Kahi koi aanch leta hai tute dil ko pighlane,
To koi chhanv dhundhta hai, sulagti rooh bujhane.
Tera hona bhi kya hota
nahi hai phir bhi to hai hi
hui muddat ke 'Ghalib' dhundhte hain hum nishaN tere
aur uspar sochna aksar ki 'uN hota to kya hota'. ~ Saba